Tuesday, January 7, 2014

‘आप’ ने दी टोपी को नई पहचान 15 अगस्त 1947 को जवाहरलाल नेहरू ने टोपी पहनी और पूरा देश टोपी के रंग में रंग गया। इसके बाद में सत्ता परिवर्तन हुआ। देश ने मोरारजी देसाई की टोपी को ईमानदारी, सच्चाई का प्रतीक माना। मोरारजी, जगजीवनराम, चरणसिंह की टोपियां पूरे देश के लिए आदर्श बनीं। आदर्शों, नैतिक बल का जलजला पैदा हुआ। नेहरू टोपी समाजवाद ला रही थी तो जेपी, चरणसिंह, मोरारजी की टोपी समग्र क्रांति से ले कर असली भारत को बदलने की टोपी लिए हुए थी। अन्ना हजारे के आंदोलन ने मानो फिर एक इस टोपी का जीवंत कर दिया और टोपी फिर से दिखाई देने लगी। अन्ना हजारे के आंदोलन से जन्मी आम आदमी की पार्टी ने इस टोपी को अपने से अलग कर लिया और यही टोपी पहकर अपनी पहचान बनाने में कामयाब रही और आप पार्टी ने दिल्ली विधानसभा में चुनाव जीता बल्कि 28 दिसंबर को दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और छह मंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह में इस टोपी की एकरूपता देखने को मिली। आम आदमी पार्टी ने न केवल टोपी को सम्मान दिया, बल्कि देश के युवाओं को इसके सम्मान के प्रति जागृत कर भारतीय संस्कृति में गुम होती हुई टोपी को नई पहचान दी। आप पार्टी ने वैसा ही काम किया जैसे एक दर्जी कपड़े सिल रहा था। दर्जी कपड़ों को काटने के बाद कैंची को पैरों के नीचे दवा कर रख लेता था और अपने माथे पर पर लगी टोपी को में से सुई निकालकर कपड़े सिलने लग जाता था और फिर जब सुई का काम हो जाता था तो वह सुई को फिर वापस टोपी में रख लेता था। इस स्थिति को देखकर पास में बैठे हुए उसके बच्चे ने बोला-पिताजी आप हमेशा सुई को अपनी टोपी में रखते हैं और कैंची को हमेशा पैरों के नीचे क्यों रखते हो तब पिता मुस्काराया और बोला- बेटा तुमने बिल्कुल सही प्रश्न किया है। अगर तुम इस चीज को समझ लिए तो हमेशा उन्नति के शिखर को पाओंगे, बेटे ने पूछा वो कैसे? पिता बोला- बेटे सुई जोड़ने का काम करती है इसलिए मैं उसे सिर पर रखता हूं और कैंची काटने का काम करती है इसलिए मैं उसे पैरों के नीचे रखता हूं। शायद यह बात अरविन्द केजरीवाल ने सही समझ पाए और उन्होंने टोपी को शुरू से ही पहने रखा और आज उसी टोपी के छत्र छाया में एक विशाल जनसमूह को खड़ा कर दिया। जनलोकपाल की मांग को लेकर समाजसेवी अन्ना हजारे की अगुवाई में आंदोलन के बूते बनी आम आदमी पार्टी (आप) कांग्रेस की गांधी टोपी पर कब्जा जमाने में भी कामयाब हो गई है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुमान के विपरीत ‘आप’ के कारण भाजपा को नहीं, बल्कि कांग्रेस का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। अन्ना हजारे के जनलोकपाल आंदोलन के दौरान गांधी टोपी एक बार फिर देश की राजनीति में भूचाल ला दिया था। गांव-गांव में इस टोपी को नई अपनी पहचान मिली और अन्ना बनाने में कामयाब हुई थी। पूरे आंदोलन के दौरान अन्ना समथर्कों ने टोपी पर लिखा- ‘मैं अन्ना हूं... जनलोकपाल चाहिए...।’ विवाद के चलते अन्ना हजारे के घनिष्ठ सहयोगी रहे अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बनाई। पार्टी के बनाने के बाद आप ने टोपी को नहीं छोड़ा और अन्ना हजारे की जगह उस पर लिखा गया ‘मैं आम आदमी हूं’। आप की चुनावी सफलता और सरकार बनने के बाद कार्यकर्ताओं के साथ उसके समथर्कों को भी गांधी टोपी खूब भाई और आज ‘आप’ का युवा कार्यकर्ता इसे पहनकर नई ऊर्जा के साथ काम कर रहा है। अन्ना हजारे आंदोलन और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने न केवल इतिहास रचने में सफल रही है, बल्कि इस टोपी को देश की पहचान बनाने में सफलता भी अर्जित की है। आज आप पार्टी की पहचान उसकी टोपी से बनी है और यह टोपी केवल दिल्ली में ही नहीं देश के कोने-कोने में दिखाई देने की शुरुआत हो चुकी है। देश में इस टोपी का कद धीरे-धीरे और बढ़ रहा है। यही कारण है कि आज विदेशी मीडिया में भी टोपी को लेकर चर्चा जोरों को पर और विदेशी लोगों को इस टोपी से रूबरू होने पर मजबूर कर रहा है। इसके साथ-साथ देश में इस टोपी का चलन बढ़ गया है। अब आगे देखना यह है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की टोपी को ‘आप’ से कितना सफल बनाती है और क्या आप पार्टी इस टोपी को जन-जन तक पहुंचाने में कामयाब रहेगी यह तो वक्त ही बताया पाएगा। किन्तु भारतीय संस्कृति में रची-बसी इस टोपी को नई पहचान देने के लिए ‘आप’ पार्टी साधुवाद की पात्र है।

Monday, December 30, 2013

आइना हूं मैं खुद का फिर भी रोज सुबह दर्पण में झाकता हूं राह नई है हादसों से भरी है फिर भी न जाने क्यों इसी राह पर चलना चाहता हूं ।।

Monday, October 29, 2012


जानिए क्या है डाइरेक्ट फॉरेन इन्वेस्टमेंट या एफडीआई?

किसी एक देश की कंपनी द्वारा किसी दूसरे देश में किया गया प्रत्यक्ष विदेशी निवेश या फॉरेन डाइरेक्ट इन्वेस्टमेंट (एफडीआई) कहलाता है। इस तरह किए गए निवेश में विदेशी निवेशक कंपनी को किसी दूसरे देश की देशी कंपनी में तय हिस्सा हासिल हो जाता है। आमतौर पर किसी निवेश को एफडीआई का दर्जा दिलाने के लिए निवेशक को कंपनी में कम-से-कम 10 प्रतिशत शेयर खरीदने पड़ते हैं। इसके साथ उसे कंपनी के आंतरिक चुनाव में मतदान का हक भी हासिल करना पड़ता है। इस तरह के निवेश से दोनों कंपनियों तथा दोनों देशों को फायदा यह होता है कि जहां एक ओर निवेशक कंपनी को नए ग्राहक तथा बाजार में अपने उत्पाद बेचने और मुनाफा कमाने का मौका मिलता है, वहीं स्थानीय कंपनी को भी लाभ में हिस्सेदारी के साथ नई पूंजी और तकनीक भी मिल जाती है और जिस देश में पूंजी निवेशित की जाती है वहां कर की आमदनी के साथ हर क्षेत्र में रोज़गार के मौके भी बढ़ते हैं। अब तक क्या था? आजादी के पहले तो देश को बहुत सारी वस्तुओं के लिए विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता ही था, आजादी के बाद भारतीय खुदरा कारोबार राशनिंग के साथ शुरू हुआ जो कपड़े और फुटवियर रिटेल से होकर गुजरता हुआ यहां तक पहुंचा। आज भारत को दुकानदारों का देश कहें तो कोई अतिश्यिोक्ति न होगी। आज भारत करीब 1.5 करोड़ खुदरा कारोबारियों के साथ तकरीबन 350 अरब डॉलर से भी बड़ा बाजार है। भारतीय खुदरा बाजार में असंगठित क्षेत्र का दबदबा है और कुल बिक्री का 94 फीसदी इसके जरिये ही होता है। भारत में पिछले दशक में डिपाटर्मेंटल स्टोर से लेकर हाइपर मार्केट और स्पेशॅलिटी स्टोर तक खुल चुके हैं। कई वैश्विक दिग्गज पहले से ही भारतीय बाजार में मौजूद हैं। बड़े शहरों और राजधानी नगरों में शॉपिंग मॉल खरीदारी के लिए मध्यम वर्ग को आकर्षित कर रहे हैं। जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़ेगी खुदरा कारोबार का आकार भी बढ़ेगा। लोगों की क्रय शक्ति बढ़ेगी पर बेहतर सेवाओं और उत्पादों के लिए उनकी मांग भी बढ़ेगी। इसके लिए विनिर्माण, रिटेल स्पेस, तकनीक, फूड लॉजिस्टिक्स और प्रसंस्करण में बड़े पैमाने पर निवेश की दरकार होगी। अगर इसे सही तरीके से अंजाम दिया जाए तो यह देश के लिए एक बड़ी सौगात साबित हो सकती है। ग्राहकों को किफायती दरों पर बेहतरीन उत्पाद और सेवाएं मिल सकेंगी। वर्षों से हमें जरूरत का बहुत सा सामान आयात करना पड़ रहा है जिसमें हमारी विदेशी मुद्रा का एक बड़ा हिस्सा खर्च हो जाता है। सामान को लाने और वितरण में होने वाले खर्चे से आयतित माल ग्राहक को बहुत मंहगा भी पड़ता है। इससे बचने का रास्ता यह निकाला गया कि सिंगल ब्राण्ड को देशी कंपनियों में हिस्सा देकर ऐसे सामान का निर्माण देश में ही किया जाए, ताकि लागत कम हो और बेरोजगारी भी घटे। परिणाम में सिल्वेनिया-लक्ष्मण, मारुति-सुजुकी और टोयोटा-किर्लोस्कर जैसे सैंकडों गठबंधन उभरे।
क्या होती हैं मल्टी और सिंगल ब्रैंड कंपनियां?
देश में बिग बाजार, सुभिक्षा, विशाल मेगा मार्ट और रिलायंस जैसे सुपरमार्केट आपने देखे या सुने होंगे। इन सुपर बाजारों में आपको किराने के साथ-साथ फल, सब्जी, कपड़े, खिलौने जैसे तमाम तरह का घरेलू सामान मिल जाता है। इस तरह के सुपर बाजार संचालित करने वाली कंपनी को ही मल्टी ब्रैंड कंपनी कहा जाता है। वॉलमार्ट(अमेरिका), कारफू (फ्रांस)और ट्रेस्को (यूके)जैसी विदेशी मल्टी ब्रैंड की कुछ नामी कंपनियों के भारत में स्टोर है लेकिन वे सिर्फ थोक कारोबार करते हैं। यानी उनसे सिर्फ दुकानें और दूसरे स्टोर ही खरीदारी कर सकते हैं, आम ग्राहक नहीं। इसी तरह सिंगल ब्रैंड विदेशी कंपनियां देश में किसी भारतीय कंपनी के साथ मिलकर अपने स्टोर खोल सकती हैं जिसमें उन्हें अधिकतम 51 फीसदी भागीदारी करने का हक है। इसी तरह सिंगल ब्रैंड कंपनिया वह होती हैं जो एक ब्रैंड के नीचे कई तरह का सामान बनाती हैं तथा उसे अपने अधिकृत स्टोर्ज के माध्यम से बेचती हैं। हमारे देश में जनवरी 2006 में सिंगल ब्रैंड क्षेत्र में विदेशी निवेश की राह खोली गई थी। रीबॉक, लिवाइज, एडिडास आदि कुछ नामी सिंगल ब्रैंड विदेशी कंपनियां है। सरकार ने पिछले साल इतालवी फैशन ब्रैंड डोल्चे एंड गब्बाना और डीएलएफ के संयुक्त उद्यम (51:49) को भारत में स्टोर खोलने की इजाजत दी थी। डीएलएफ को 2008 में अरमानी, सल्वातोर फेरागैमो और पिकाड्रो के साथ इसी तरह के करार करने की सरकारी मंजूरी भी मिली। मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस ब्रैंड्स को भी ब्रिटेन की मार्क्स एंड स्पेंसर के साथ एकल ब्रैंड का रिटेल उद्यम खड़ा करने की सरकारी इजाजत मिली थी।
क्या हैं शर्तें?
< किसी भी मल्टी ब्रैंड प्रॉजेक्ट में कम-से-कम एफडीआई 100 मिलियन डॉलर या 500 करोड़ रुपए होगा। < कम-से-कम आधी रकम कंपनी को बैकएंड इंफ्रास्ट्रक्चर मतलब कोल्ड चेन स्टोर और गोदामों पर खर्च करनी होगी। < राज्य सरकारें अगर चाहें तो अपने प्रदेश में एफडीआई पर रोक लगा सकती हैं। < फिलहाल ये स्टोर सिर्फ 53 ऐसे शहरों में खुलेंगे जहां की आबादी 10 लाख से ज्यादा है। < इन स्टोर्ज को 30 फीसदी उत्पाद छोटे और मझोले भारतीय उद्योगों से खरीदने होंगे। एफडीआई के पक्ष में तर्क एफडीआई से जहां उपभोक्ताओं को फायदा होता है, वहीं बुनियादी ढांचे और अर्थव्यवस्था को भी लाभ मिलता है। देश में दूरसंचार, वाहन और बीमा क्षेत्र में एफडीआई की वजह से आई कामयाबी को हम देख ही चुके हैं। इन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर हुए निवेश की वजह से आज ग्राहकों को बेहतर सेवाएं और उत्पाद नसीब हुए हैं। इस माहोल में बढ़ी हुई प्रतिस्पर्द्घा ने देशी कंपनियों को भी बेहतर बनने के लिए प्रेरित किया है। भारत दुनिया का शॉपिंग हब बन सकता है जिससे अर्थव्यवस्था और मजबूत होगी। < खुदरा क्षेत्र में बड़े निवेश से अगले तीन साल में एक करोड़ रोजगार के मौके उपलब्ध होंगे। < उपभोक्ता तक जो चीज अभी 20 रुपये में पहुंचती है, उसकी कीमत उसे पैदा करने वाले किसान को महज 4 रुपये मिल पाती है। बाकी का पैसा आढ़ती और बिचौलियों की जेब में जाता है। अब कंपनियां सीधे किसानों से सामान खरीदेंगी, जिससे किसानों उचित भाव मिलेगा और बिचौलियों द्वारा किया जाने वाला शोषण कम होगा। < छोटी किराना दुकानों को इससे कोई नुकसान नहीं होगा, क्योंकि एक साबुन या एक पेस्ट और चाय पत्ती जैसी तुरंत जरूरत के लिए कोई भी सुबह-सुबह बड़े स्टोर की ओर नहीं भागता। ये दुकानें अपने ग्राहक की आदतों को जितना वे जानती हैं, कंपनियों कभी नहीं जान पाएंगी। आपसी व्यवहार और उधार के दम पर चलने वाली ये छोटी दुकाने कभी बंद नहीं हो सकती। < इन कंपनियों को 30 प्रतिशत सामान छोटे व्यापारियों से खरीदना होगा जिससे स्थानीय उद्योगों को फायदा होगा तथा इससे देश में नई तकनीक आएगी। < आपूर्ति व्यवस्था ज्यादा प्रभावी होगी, आधारभूत ढ़ांचे (इंफ्रास्ट्रक्चर) की कमी के कारण खाने-पीने वस्तुएं खासतौर पर फल और सब्जियां जो अब तक सार-सम्भाल के आभाव में सड़ जाती थी या लगभग मुफ्त में बेचनी पड़ती थी, वे अधिक समय सुरक्षित और उपयोग के लायक बनी रहेंगी। इससे खाने-पीने की वस्तुओं में महंगाई दर में भी कमी आएगी। < पे्रडॅटरी प्राइसिंग (यानी अपने कमजोर प्रतिद्वन्द्वी और छोटे दुकानदारों को बाजार से बाहर करने के लिए माल को लागत मूल्यों से भी कम दरों पर बेचने की रणनीति) को रोकने के लिए कड़े नियम बनाए जाएंगे। < देश की बड़ी कंपनियों को पहले ही रिटेल में आने की इजाजत है। चीन हो या इंडोनेशिया जहां भी रिटेल में एफडीआई को मंजूरी दी गई वहां एग्रो-प्रोसेसिंग इंडस्ट्री यानी कृषि प्रसंस्करण उद्योग के दिन फिर गए। एफडीआई के विरोध में तर्क बहरहाल एफडीआई को लेकर बहस सकारात्मक पहलुओं को न लेकर नकारात्मक बिंदुओं के इर्द-गिर्द हो रही है। जिसका मुख्य तर्क यह है कि इससे छोटे कारोबारियों को नुकसान होगा और उनकी आजीविका संकट में पड़ जाएगी। < बड़ी विदेशी कंपनियां बाजार का विस्तार नहीं करके मौजूदा बाजार पर ही काबिज हो जाएंगी। ऐसे में खुदरा बाजार से जुड़े 4 करोड़ लोगों पर इसका असर पड़ेगा। अब तक के अंतरराष्ट्रीय उदाहरण ऐसा बताते हैं कि सुपरमार्केट छोटे रिटेलरों को निगल गए हैं। यूएस और यूरोप में छोटे रिटेल स्टोर्ज का अस्तित्व ही मिट चुका है। जिन नौकरियों की बात सरकार रही है, उनमें ज्यादातर निचले दर्जे की होंगी। < इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि बिना किसी निगरानी ये कंपनियां 30 प्रतिशत सामान छोटे उद्योगों से खरीदेंगी। जिन देशों में यह व्यवस्था लागू है, वहां ऐसे स्टोर घरेलू उद्योगों से माल खरीदने की बजाय अंतरराष्ट्रीय बैं्रडज पर ज्यादा भरोसा करते हैं। < जरूरत के सामान की सप्लाई पर विदेशी कंपनियों का अधिकार हो जाएगा। विदेशी कंपनियां दाम घटाकर लोगों को लुभाएंगी और उनका मुकाबला देशी कंपनियों के बस का नहीं होगा जिससे किराना स्टोर्ज और छोटे व्यापारियों को नई व्यवस्था पूरी तरह नष्ट कर देगी। < आपूर्ति व्यवस्था को क्या केवल विदेशी कंपनियां ही ठीक कर सकती हैं? यह तो सरकार खुद भी कर सकती है। जहां तक आधारभूत ढ़ाचे की बात है तो सड़कें बनाने और बिजली पैदा करने में इन विदेशी कंपनियों का कोई रोल नहीं होगा, वे सिर्फ भंडारण क्षमता बेहतर कर सकती हैं। < बिचौलियों से बचने के लिए सरकार को कुछ और तरीके इस्तेमाल में लाने चाहिए, एफडीआई इसका एकमात्र हल नहीं है। < भारत और चीन की तुलना इस मसले पर गलत है। चीन विदेशी कंपनियों का सबसे बड़ा सप्लायर है और भारत में रिटेल में एफडीआई होने पर चीन का ही सामान यहां बिकेगा।
वॉलमार्ट स्टोर्स इंकॉर्पोरेशन
वॉलमार्ट स्टोर्स इंकॉर्पोरेशन दुनिया की सबसे बड़ी रिटेल कंपनी है। उसका सालाना कारोबार 21 लाख करोड़ रुपये का है। वो दुनिया में खाने-पीने के सामान की सबसे ज्यादा बिक्री करने वाली कंपनी है। दुनिया के 15 से ज्यादा देशों में वॉलमार्ट के साढ़े 8 हजार से ज्यादा स्टोर्स हैं। जहां करीब 21 लाख लोग काम करते हैं। 1962 में सैम वॉल्टन ने अमेरिका के आर्क प्रांत के रोजर्स में पहला वॉलमार्ट स्टोर्स खोला। शायद उन्हें भी अंदाजा नहीं था कि महज 40साल में ही कंपनी दुनिया की शीर्ष कंपनियों में शुमार हो जाएगी। एक डिस्काउंट स्टोर के तौर पर शुरुआत के बाद सैम वॉल्टन ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। एक से दो, दो से चार और आज वॉलमार्ट के स्टोर्स की गिनती साढ़े 8 हजार से ज्यादा हो चुकी है। कंपनी का 70फीसदी कारोबार अमेरिका और यूरोप में है जबकि 20 फीसदी हिस्सा चीन और जापान से आता है। बाकी की कमाई दूसरे छोटे मुल्कों से होती है। कमाई के अलावा कई ऐसे आंकड़े हैं जो वॉलमार्ट को दुनिया की सबसे बड़ी और अलग कंपनी बनाते हैं। वॉलमार्ट में 21 लाख लोग काम करते हैं, जो कि आइसलैंड की कुल आबादी का सात गुना है। वॉलमार्ट का सालाना कारोबार 21 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का है, जो दुनिया की 23वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के बराबर है और ये स्वीडन की अर्थव्यवस्था से भी बड़ा है। 2010 में वॉलमार्ट में 770 करोड़ लोगों ने खरीदारी की, जबकि कि दुनिया की कुल आबादी 700 करोड़ से ज्यादा है। अमेरिका की एक तिहाई आबादी हर हफ्ते वॉलमार्ट में खरीदारी करती है। वॉलमार्ट के एक स्टोर का औसत क्षेत्रफल 80 हजार वगर्फुट के करीब है और अगर इसके सारे स्टोर्स का क्षेत्रफल जोड़ दिया जाए तो उससे करीब 15300 फुटबॉल के मैदान तैयार हो सकते हैं। वॉलमार्ट के स्टोर्स का पार्किंग लॉट करीब साढ़े चार सौ वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है इतने में नोएडा जैसे दो शहर समा जाएंगे। वॉलमार्ट का हेडक्वॉर्टर अमेरिका के अरकंसास में है। कंपनी कई देशों में दूसरे नामों से काम करती है। जैसे मैक्सिको में वॉलमैक्स, ब्रिटेन में एस्डा और भारत में बेस्ट प्राइस। अब देखना ये है कि विदेशी निवेश को मंजूरी मिलने के बाद वॉलमार्ट को भारत में कितनी कामयाबी मिलती है।
क्या होगा अब
< एफडीआई से अगले तीन साल में रिटेल सेक्टर में एक करोड़ नई नौकरियां मिलने की संभावना है। < ऐसा माना जा रहा है कि किसानों को बिचौलियों से मुक्ति मिलेगी और अपने सामान की सही कीमत भी। < सरकार मानती है कि रिटेल में एफडीआई से लोगों को कम दामों पर मिलेगा बेहतर सामान। < शर्त के अनुसार विदेशी कंपनियां कम से कम 30 फीसदी सामान भारतीय बाजार से ही लेगी। इससे लोगों की
आय बढ़ेगी और औद्योगिक विकास दर में भी सुधार होगा।
< बड़े शहरों में ही खुलेगी संगठित क्षेत्र की शॉप्स। सस्ता मिलेगा छोटे दुकानदारों को सामान। < विदेशी कंपनियां अधिकतम 51 फीसदी हिस्सेदारी रख सकती हैं. < किसानों और उत्पादकों से सामान खरीदेंगी विदेशी कंपनियां. < सीधे ग्राहकों को सामान बेचेंगी विदेशी कंपनियां. < बिचौलिए कम होने से महंगाई घटेगी < खुदरा कारोबार के लिए ढ़ांचा बनेगा
विदेशी किराना का विरोध करने वालों के तर्क
< कंपनियां मनचाहे दामों पर सामान बेचेंगी < इंफ्रास्ट्रक्चर का खर्चा जनता से वसूलेंगी < कंपनियां व्यापार पर कब्जा कर लेंगी < कंपनियां किसानों को सही दाम नहीं देंगी < विरोधियों का मानना है कि विदेशी कंपनियां सस्ता सामान बेचकर लुभाएंगी। देशी दुकानदार नहीं कर पाएंगे मुकाबला। < रिटेल में विदेशी निवेश से छोटी दुकानें खत्म हो जाएगी और लोगों के समक्ष रोजगार का संकट पैदा हो जाएगा। < छोटे दुकानदारों का धंधा ठप हो जाएगा और किसानों को भी उनकी उपज का वाजिब मूल्य नहीं मिलेगा। < विदेशी कंपनियां 70 प्रतिशत सामान अपने बाजार से ही खरीदेगी और ऐसे में घरेलू बाजार से नौकरी छिनेगी। < बड़ी विदेशी कंपनियां बाजार का विस्तार नहीं करेंगी बल्कि मौजूदा कंपनियों का अधिग्रहण कर बाजार पर ही काबिज हो जाएंगी। किंगफिशर के मालिक विजय माल्या ने सरकार के फैसलों की सराहना की है। उन्होंने ट्विटर पर लिखा, ‘सरकार के साहसी फैसले. विश्वास बहाली और आर्थिक सुधारों के लिए अवसर शुरू करने के लिए जबरदस्त फैसले’ महिंद्रा ग्रुप के अध्यक्ष आनंद महिंद्रा ने भी सरकार की पीठ थपथपाई है। उन्होंने ट्वीट किया, ‘नीतिगत कदमों के सूखे से हम से उत्सव में माहौल की तरफ तेजी से बढ़े हैं। सरकार की सद्-बुद्धि लौट आई है। हम उन्हें बधाई देते हैं और उनसे इस रास्ते पर बने रहने की अपील करते हैं’
रिटेल में बरसेगी नौकरियां!
भले ही अर्थव्यवस्था की चाल अभी सुस्त पड़ गई हो, लेकिन रिटेल में नई संभावानाएं दिखाई देने लगी हैं। रिटेल सेक्टर में सरकार द्वारा 51 फीसदी एफडीआई की घोषणा के बाद करीब एक करोड़ नई नौकरियां आने की संभावनाएं देखी जा रही हैं। कहा जा रहा है कि सरकार के इस कदम से वालमार्ट के अलावा, बर्गर किंग, टिफ्फेनीज, सिल्वरवेयर, विक्टोरियाज सीक्र ेट, अमेरिकन एपरल, ओल्ड नेवी आदि जैसी कंपनियां भारत में अपना स्टोर खोल सकेंगी। सबकी है नजर : दुनिया के दूसरे सबसे बड़े बाजार में अपना कारोबार करने के लिए कई अमेरिकी कंपनियां अपनी नजर गड़ाई हुई हैं। सिंगल ब्रांड में 100 फीसदी एफडीआई के बाद अब अमेरिकी, इटली, स्वीडेन आदि कंपनियां का भारत में कारोबार करना आसान हो जाएगा। वैसे, रिटेल बाजार पर केवल विदेशी कंपनियों की ही नहीं, बल्कि भारतीय कंपनियां भी तेजी से पांव पसारने की योजना पर काम कर रही है। भारत की बड़ी रिटेल कंपनी रिलायंस रिटेल की योजना अगले पांच साल में देश भर में अपने स्टोरों की संख्या दोगुना करने की है। कंपनी की उत्तर प्रदेश सहित पूर्वी भारत के राज्यों में बड़ी संख्या में स्टोर खोलने की योजना है। आरपीजी समूह की कंपनी स्पेंसर्स रिटेल भी अगले वित्त वर्ष में देश भर में 15 से 20 हाइपरमार्ट खोलेगी। बड़ा है रिटेल बाजार : भारत का रिटेल बाजार काफी बड़ा है, तभी दुनिया भर की कंपनियों की नजर यहां पर लगी हुई हैं। क्रय शक्ति के हिसाब से भी भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। भारत के पहले अमेरिका, चीन व जापान का स्थान है। एक अनुमान के अनुसार, 2050 तक भारत दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी। सबसे बड़ी बात यह है कि आज की यंग इंडिया कंज्यूमर कल्चर से पूरी तरह से प्रभावित है और पैसा खर्च करने में भी आगे रहती है। भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर भी लगभग 7 फीसदी हैै, जो कि दुनिया के कई बड़े देशों से बेहतर है। देश की लगभग 60 फीसदी जनसंख्या वर्किंग पॉपुलेशन के दायरे में है, जिसके पास खर्च करने के लिए पर्याप्त मात्रा में पैसा है। यह वह सेगमेंट है, जिन्हें बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल्स में जाकर खरीदारी करना पसंद है। यही वह तथ्य है जिसकी वजह से आने वाले वक्तमें आॅगर्नाइज्ड रिटेल इंडस्ट्री को बढ़ावा मिलेगा, जिसका आकार आज भी अनआॅगर्नाइज्ड रिटेल इंडस्ट्री की तुलना में काफी छोटा है। भारत में खुदरा कारोबार की बात की जाए, तो मौजूदा दौर में यह 450 अरब डॉलर का है। वहीं साल 2015 तक यह कारोबार 785 अरब डॉलर पहुंचने की उम्मीद है। हालांकि इस खुदरा कारोबार में 90 फीसदी हिस्सा छोटे कारोबारी और दुकानदारों का है। बाकी 10 फीसदी हिस्सा संगठित कारोबार का है। मैकिंजे एंड कंपनी की एक रिपोर्ट के मुताबिक रिटेल इंडस्ट्री की हिस्सेदारी 2008 में 5 प्रतिशत थी, वहीं 2015 तक बढ़ कर 10-14 प्रतिशत तक होने की उम्मीद है। देश की जीडीपी में कुल 10 प्रतिशत का और रोजगार सेवा क्षेत्र में 8 प्रतिशत का योगदान देने वाली इस इंडस्ट्री का दायरा आगामी पांच वर्षों में फैल कर 30 प्रतिशत तक हो जाएगा। इन आंकड़ों को देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि मैनेजमेंट का यह क्षेत्र दिन-प्रतिदिन ग्रोथ कर रहा है और इसमें स्टूडेंट्स का भविष्य काफी उज्जवल है। महिलाओं के लिए आॅपरचुनिटि : रिटेल सेक्टर में महिलाओं के लिए भी आॅपरचुनिटी कम नहीं है। महिलाएं स्पेश्लाइज्ड कोर्स कर इस क्षेत्र में कदम आगे बढ़ा सकती हैं। आज महिलाएं रिटेल में सभी क्षेत्रों- विजुअल मर्र्र्चेेडाइजिंग, इंवेंटरी मैनेजमेंट से लेकर सप्लाई चेन मैनेजमेंट और लॉजिस्टिक्स तक में जॉब की तलाश कर सकती हैं। यही कारण है कि अपने नए अंदाज में रिटेल सेक्टर महिला वर्ग को भी आकर्षित कर रहा है। मुख्यतौर पर महिलाएं जिन क्षेत्रों में आ सकती हैं, उनमें विजुअल मर्र्चेडाइजिंग, स्टोर डिजाइन, स्टोर आॅपरेशंस, परचेजिंग और मर्र्चेडाइजिंग, कैटेगरी मैनेजमेंट, कस्टमर रिलेशनशिप मैनेजमेंट और मार्केङ्क्षटग शामिल हैं। रिटेल में पद : यदि आपके पास रिटेल मार्केट की फील्ड में एमबीए डिग्री या डिप्लोमा है, तो आप सेल्स मैनेजर, स्टोर मैनेजर, एरिया मैनेजर, रीजनल मैनेजर, मैनेजमेंट ट्रेनी, मर्केंडाइज मैनेजर, रिटेल सेल्स रिप्रेजेंटेटिव, स्टोर मैनेजमेंट, असिस्टेंट स्टोर मैनेजर, सेल्स मैनेजमेंट ट्रेनी आदि पदों पर नियुक्ति पा सकते हैं। कंपनी में डिपाटर्मेंट मैनेजर, असिस्टेंट स्टोर मैनेजर, बायर ट्रेनी, कस्टमर सर्विस रिप्रेजेंटेटिव और मैनेजमेंट ट्रेनी, मार्केटिंग ऐंड सेल्स एग्जिक्यूटिव सहित अन्य पोस्ट पर काम करने का मौका मिल सकता है। अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप इनमें से किस तरह के जॉब चाहते हैं।
रिटेल में जॉब आॅप्शन
सेल्स-पर्सन : रिटेल में करियर बनाना चाहते हैं, तो सेल्स पर्सन के रूप में शुरुआत कर सकते हैं। शुरुआती दौर में प्रोफेशनल को एंट्री लेवल में सेल्स-पर्सन की पोस्ट मिलती है। रिटेल कंपनियां इन्हीं सेल्स पर्सन के ऊपर निर्भर करती हैं। अच्छा सेल्स पर्सन होने के लिए प्रोडक्ट की अच्छी समझ, शॉप, कस्टमर आदि की जानकारी होनी जरूरी है। सेल्स एसोसिएट, सेल्स मैनेजर, डिपाटर्मेंट मैनेजर जैसे कुछ पद हैं, जो इस विभाग के अंतर्गत आते हैं। स्टोर मैनेजर: आप चाहें, तो करियर की शुरुआत स्टोर मैनेजर से कर सकते हैं। यह रिटेल का अहम हिस्सा होता है। इन्हें जनरल मैनेजर या स्टोर डायरेक्टर भी कहा जाता है। ये कमर्चारियों को वेतन देने से लेकर ड्यूटी तय करने जैसा कार्य करते हैं। स्टोर की रिपोर्ट डिस्ट्रिक्ट एरिया मैनेजर को भेजना भी इन्हीं का काम होता है। रिटेल मैनेजर : रिटेल स्टोर में इनका काम आउटलेट के लिए प्लान तैयार करने से लेकर कोआॅडिर्नेशन, आॅपरेशन आदि होता है। लेआउट के मर्केंडाइज, रिटेल आॅर्डर एवं स्टॉक की मॉनीटरिंग, एम्प्लाई की रिपोर्ट तैयार करने का काम इस सेक्शन के अंतर्गत आता है। एमबीए स्टूडेंट्स रिटेल मैनेजर के रूप में करियर शुरू कर सकते हैं। रिटेल बायर्स एवं मर्केंडाइजर : ये रिटेल के सामान तय करने और उन्हें खरीदने का काम करते हैं, इसलिए इन्हें कस्टमर की समझ, ट्रैंड व मार्केट की जानकारी होनी जरूरी है। विजुअल मर्केंडाइजर : यह इंडस्ट्री का एक बड़ा पद होता है। इसके अंतर्गत ब्रांड को एक आकार दिया जाता है। स्टोर के डिजाइन व कॉन्सेप्ट तैयार करने, लेआउट, कलर, कंज्यूमर की पसंद आदि कार्यों के चलते यह सेक्शन टेक्निकल डिजाइनर, प्रोडक्ट डेवलपर तथा स्टोर प्लानर का रूप अख्तियार कर चुका है। जॉब आॅपरचुनिटि : देश की तथा मल्टीनेशनल कंपनियां कई रूपों में संभावनाएं ला रही हैं, जिसके चलते देश व विदेश, दोनों जगह काम करने की आॅपरचुनिटि मिल रही है। आने वाले समय में अधिकांश रिटेल कंपनियां ग्रामीण क्षेत्रों में अपना सेटअप लगाने वाली हैं। इसके लिए उन्हें कुशल व योग्य प्रोफेशनल्स की जरूरत होगी। आप मल्टी ब्रांड स्टोर, बैंक, शॉपिंग मॉल्स, देशी एवं विदेशी कंपनियों के बड़े-बड़े शोरूम में नौकरी कर सकते हैं। किसी भी बडे रिटेल स्टोर में 250 से लेकर 500 लोगों की आवश्यकता होती है और हर मॉल में दो से तीन बडे रिटेल स्टोर होते हैं। प्रत्येक रिटेल कंपनी में टीम मेम्बर से लेकर सीनियर्स मैनेजर के जॉब्स तक होते हैं। अगर आपकी अंग्रेजी में अच्छी पकड़ है, तो मल्टीनेशनल कंपनियों के विदेशों में स्थिम शोरूम में भी नौकरी कर सकते हैं। सैलरी पैकेज : इस फील्ड में शुरुआती दौर में सेल्समैन के रूप में कार्य करने वाले कैंडिडेट्स 5000 से लेकर 8000 रुपये आसानी से कमा सकते हैं। रिटेल सेल्स रिप्रेजेंटेटिव पद पर नियुक्ति मिलने पर बड़ी कंपनियों में शुरुआती सैलरी 10-18 हजार रुपये तथा मैनेजमेंट ट्रेनी पोस्ट पर नियुक्ति पाने वाले कैंडिडेट्स 14-20 हजार रुपये तथा मैनेजर पदों पर कार्य करने वाले लोग 20 - 60 हजार रुपये प्रति माह सैलरी के हकदार बन सकते हैं। भारत में रिटेल : दरअसल, रिटेल शब्द की उत्पत्ति फ्रेंच शब्द रिटेलर से हुई है, जिसका अर्थ होता है एक टुकड़ा अलग करना या फिर ढेर को बांटना। रिटेल कारोबार में प्रोडेक्ट बेचना और ग्राहक के लिए सेवा देना महत्वपूर्ण है।
इन बातों की रखें योग्यता
-बेहतर कम्युनिकेशन स्किल्स -गुड बिहेवियर -क्लाइंट को डील करने की दक्षता -प्रोडक्ट की उपयोगी जानकारी -रिटेल इंडस्ट्री के बदलाव से अपडेट -एडवरटाइजिंग एवं मर्केंडाइजिंग -कम्प्यूटर ज्ञान

फेरर तीसरी बार बने चैम्पियन


वलेंसिया। विश्व के पांचवीं वरीयता प्राप्त स्पेनिश टेनिस खिलाड़ी डेविड फेरर ने पेशेवर टेनिस संघ (एटीपी) वलेंसिया ओपन 500 टूर्नामेंट का पुरुष एकल खिताब तीसरी बार जीत लिया है। एटीपी के मुताबिक, रविवार को खेले गए पुरुषों की एकल स्पर्धा के फाइनल मुकाबले में टूर्नामेंट के शीर्ष वरीयता प्राप्त फेरर ने यूक्रेन के एलेक्जेंडर डोल्गोपोलोव को 6-1, 3-6, 6-4 से पराजित किया। यह मुकाबला एक घंटे और 49 मिनट तक चला। हार्ड कोर्ट के विशेषज्ञ के रूप में विख्यात फेरर ने जीत के बाद कहा कि घर पर खेलना हमेशा मुश्किल होता है। मैं जानता था कि दोबारा यहां खिताब जीतना मुश्किल होगा। वह एक प्रतिभावान प्रतिद्वंद्वी थे। मैंने आक्रामक होकर खेला जो मेरे लिए फायदेमंद रहा। फेरर के अब 17 एकल खिताब हो गए हैं जबकि युगल में उन्होंने दो खिताब अपने नाम किए हैं। उल्लेखनीय है कि फेरर ने वर्ष 2008 और 2010 में भी एक खिताब अपने नाम किया था। इस जीत से फेरर को 500 जबकि डोल्गोपोलोव को 300 एटीपी रेटिंग अंक मिले। उधर, युगल स्पर्धा का खिताब ऑस्ट्रिया के एलेक्जेंडर पेया और ब्राजील के ब्रूनो सुआरेस ने जीता। खिताबी मुकाबले में पेया और सोआरेस की दूसरी वरीयता प्राप्त जोड़ी ने स्पेन के डेविड मरेरो और फर्नाडो वर्दास्को की जोड़ी को 6-3, 6-2 से हराया।